साहिब बंदगी के संत सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज अखनूर, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि जितना विवाद साहिब के मार्ग में है, इतना कहीं नहीं है। क्या वजह है। क्या साहिब की वाणी में विरोधाभास है। नहीं।
मुझे दीक्षा देते 55 साल हो गये। जितने भी मत-मतान्तर हैं, सबका अध्ययन किया, सबको देखा। एक समय था, जब साहिब की भक्ति पूरे विश्व में फैली और लोगों का रूझान साहिब की भक्ति की तरफ हो गया। ऐसे में कुछ उनमें शामिल हो गये।
साहिब की शाखा से कुछ मत-मतान्तर निकले। सब कह रहे हैं कि असली हम हैं। ऐसे में फैसला करना मुश्किल होता है कि असली कौन है। गुरुदेव ने 8 लोगों को नाम दिया। अभी वो 8 के 8 शरीर छोड़ चुके। वो सब कह रहे थे कि असली हम ही उत्तराधिकारी हैं। एक पहला शिष्य था, वो अनपढ़ था। बोला कि राजा अपना राज्य बड़े पुत्र को देता है। बड़े हम हैं। मेरे भी कुछ शिष्य दीक्षा देने लगे। मैंने किसी को आदेश नहीं दिया।
आगे साहिब ने कहा कि उस परम तत्व की प्राप्ति के लिए एक अदद गुरु की जरूरत बोली। लोग ग्रंथों को पढ़ते हैं, पर उसपर चिंतन नहीं करते हैं। रामायण स्पष्ट बोल रही है कि गुरु के बिना कोई भी भवसागर से पार नहीं हो सकता है। चाहे वो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान ही क्यों न हो। राम और कृष्ण जी से बड़ा कौन हुआ। वो तो तीन लोक के नायक थे। वो भी जब संसार में अवतार धारण करके आए, तो उन्होंने भी गुरु धारण किया।
सीधी सी बात है कि कुछ आगे सत्य तत्व है। सत्य गुरु के बिना उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती है। वो परम तत्व इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता है। पाँच तत्वों को ही इन इंद्रियों से देखा जा सकता है। जल देख सकता है, पृथ्वी को देख सकता है, वायु देख सकता है, आग को देख सतका है, आकाश को देख सकता है। इन तत्वों के अलावा कुछ और नहीं देख सकती हैं ये इंद्रियाँ। वाणियों में साफ आ रहा है कि वो प्रभु इनसे परे है। फिर कुछ ज्ञान इंद्रियाँ भी देख सकती हैं। सर्द गर्म महसूस कर सकती हैं। खुशबू महसूस कर सकती हैं। पर वो तत्व इनसे भी नहीं जाना जा सकता है। इसलिए उस परम तत्व को इनसे परे कहा। अन्तःकरण की चार इंद्रियों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकारसे भी नहीं जाना जा सकता। वो व्योमातीत, अक्षरातीत आदि बोला। जब गुरु कुछ ऐसा तत्व अन्दर में देगा तब वो उस चीज से जाना जायेगा। ऐसा क्या है। इस शरीर में ईश्वर तक जाने का साधन नहीं है। अगर यह संभव होता तो पूरी दुनिया मुक्त होती। इसलिए सबसे दुर्लभ परम पद है। फिर हम उसको कैसे देख सकते हैं। आत्मा की ताकत से। तो सब आत्मा की ताकत से क्यों नहीं देख पा रहे हैं। आत्मा तो अन्दर है न। मोतियाबिंद हो जाता है तो साफ साफ दिखाई नहीं देता है। साहिब कह रहे हैं कि संसार में मोतियाबिंद पड़ा है। कोई भी डाक्टर को यदि मोतियाबिंद है तो वो अपने मोतियाबिंद का आप्रेश्न खुद नहीं कर सकता है। इसी तरह यह मनुष्य खुद संसार सागर से पार नहीं हो सकता है। कितने भी यत्न क्यों न कर ले। यह बहुत बंधनो से बाँधा गया है। किसी भी कीमत पर अपनी ताकत से नहीं छूट सकता है। जब तक वो ताकत खुद न छुड़ाए, तब तक नहीं छूट सकता है। कितना भी भागीरथी प्रयास कर ले, नहीं छूट सकता है। रास्ते में 70 प्रलय है। इसलिए असंभव है। आत्मा को छुड़ाकर, जहाँ से वो आई है, वापिस वहाँ पहुँचाने वाली ताकत सच्चा सद्गुरु देता है, जो वहाँ पहुँचा हुआ हो।

Dated : 14-9-2025
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